राजनेता
लटके हैं पैर कब्र में फिर भी सत्ता लोलुपता जाती नहीं ,
अस्वस्थ , अशक्त हैं , फिर भी कुर्सी से चिपके रहने की लालसा जाती नहीं ,
जनता का धन खाकर इनकी भूख कभी शांत होती नहीं ,
अपरिमित धन संचय की इनकी प्रवृत्ति कभी जाती नहीं ,
सत्ता को तो इन्होंने अपनी बपौती समझ लिया है ,
बेटे ,बेटियों के लिए ही क्या , नाती पोते तक के
लिए इन्होंने इंतज़ाम कर लिया है ,
राजनीति में वंशवाद लोकतंत्र पर भारी है ,
निरीह जनता इनके भुलावों में फंसी बेचारी है ,
इनकी कथनी करनी के दोहरे मापदंड है ,
कहते हैं अपने को जनसेवक , पर ये महाधूर्त प्रचंड हैं ,
कभी जाति, कभी धर्म ,कभी क्षेत्रीयता के नाम पर द्वेष फैलाते हैं ,
कभी भ्रामक प्रचार से लोगों को उकसा कर दंगे भड़काते हैं ,
ये स्वार्थी तत्व जनता के हितों को दरकिनार करते हैं ,
अपना स्वार्थ सिद्ध कर अपना ही उल्लू सीधा करते हैं,
जनता को ये चुनावी घोषणा के सब्जबाग दिखाते हैं ,
चुनाव के बाद उसी जनता से मिलने से कतराते हैं,
न जाने कब जनता इनके चक्रव्यूह से उबरेगी ,
जब तक जनजागृति ना हो , यूंही आवृत्ति होती रहेगी ,