“राजनीती” शब्द ही घिनौनी हैं
एहतियात सी ज़िंदगी नवाबों का शहर बन जाता है,
मनुष्यता के किताब को अछूत समझा जाता है,
हथेलियों में इस शब्द का मोहर गारा जाता है,
गली गली और शहर शहर बदनामियों को अच्छाई से परोसा जाता है।
ताश के पत्तों की तरह अपना रंग जमा जाता है,
बेरंग नहीं है जिसका हर रंग समय समय में खिलता रहता है,
बेईमानी की हवस को हर एक निवाले में घोल जाता है,
गली गली और शहर शहर बदनामियों को अच्छाई से परोसा जाता है।
संजोया हैं रिश्ता मगर इनको पैसा से नपा जाता है,
हर एक सच्च को कटघरे में बड़ी शिदात से बंद किया जाता है,
काले धुएं की तरह हैं जो घिनौना देहशात फेला जाता है,
गली गली और शहर शहर बदनामियों को अच्छाई से परोसा जाता है।
नाकाम सी कोशिश है जो हर कोई इसको मिटाने के लिए करता जाता है,
सच्छ और झूठ जैसे शब्दों में एक प्रश्न चिन्ह लगा जाता हैं,
अगर सोचो तो! इस खेल में हर कोई अपनी दाओ पैच रचता है,
गली गली और शहर शहर बदनामियों को अच्छाई से परोसा जाता है।
– Basanta Bhowmick