राजनीति
कोई गरम है कोई नरम है
पर किसी में सरम नही,
विकास कोई करता नही
बस पार्टी का भरम है ।
कोई भगवा वस्त्र पहन
हिंदू वोट बनाता है,
कोई मस्जिदों में जाकर
मौलाओ को रिझाता है,
साफ सफेद कपड़ों वाले
अब बात समझ में आ गई , ये राजनीत के मरम है।
जनता है बेबस लाचार
करती है पांच बरस का इंतजार,
अबकी बार लहर उठेगी
विकास धरा पर दिखेगी,
यह कहकर सब करते अपना करम हैं।
सियासी चाल चलने वाले
धुआं देख के आग लगाते हैं,
समस्या समाधान नही कर
लोगों को गुमराह बनाते हैं,
छोले भटूरे खाके अनसन पर बैठना इनका धरम है।
नेता ना कहे ये हो नही सकता
काम सबका हो जाए ये कैसे हो सकता?
कभी मंदिर का आश्वासन दे ,
राम भक्त बन जाते हैं
कभी कब्रिस्तान को घिरवाकर
मौला बन जाते हैं,
आपस में लड़वाना इनका कर्तव्य परम है
कोई नरम है कोई गरम है…..