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25 May 2021 · 1 min read

राजनीति

राजनीति

राजनीति कोई शतरंज की बिसात नहीं,
पर यह है, सबके बस की बात नहीं।
कोई चढ़ा यहां, तो कोई लुढ़का,
पर सितारा हुआ बुलंद सदा इसमें,
जमी जमाई सल्तनत वालों की ।
लिखा संविधान भी क्या नियम कायदे से,
जिसने भी सादगी दिखाई, वो गया काम से।
ये कूटनीति भी राजनीति का ही हिस्सा है,
जल से भरी थाली में,
चाँद दिखलाने का किस्सा है।
शह और मात के इस खेल में,
अपने ही अपनों को ठगते है ।
जो लगा रहा, बस जनसेवा में,
वो कदम – कदम भटकते हैं।
बलशाली यदुवंश,क्षत्रिय खड्गधारी,
ये लोकतंत्र के पहिये है।
पर चित्रांशो की बात कहाँ,
है असाधारण ! पर न किए कभी,
दिल से कोई बगावत यहाँ।
इस मायाजाल सी समरभूमि में,
पग रखना होगा सम्भल-सम्भल।
सृजन-विसर्जन के कालचक्र में,
मत भूलो, धर्मपथ अविरल।

मौलिक एवं स्वरचित

© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )

Language: Hindi
9 Likes · 4 Comments · 1297 Views
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