” राजनीति बनाम वर्षों की दोस्ती गई भाड़ में “
” रखिए दिल में
हर अपने को प्यार से
उसको न जाने दिजिये
थोड़ी सी तकरार से ”
ज्यादातर हम सब फेसबुक पर वर्षों पुराने दोस्त हैं , सीनियर – जूनियर हैं , नये भी बने हैं…सबके अपने – अपने विचार हमेशा से उनके साथ रहे हैं और रहने भी चाहिए , कोई किसी का पिछलग्गू क्यों बने….किसी को कोई राजनीतिक दल पसंद है किसी को कोई अगर ये ना हो तो पक्ष – विपक्ष ना हो….पक्ष – विपक्ष बनिये दुश्मन नही…. अरे एक माँ के विचारों से दो बेटे सहमत नही होते हैं तो इतने राजनितिक दलों से सब एक साथ कैसे सहमत हो सकते हैं ? अच्छी खासी दोस्ती इनके चक्कर में कुर्बान हुईं जा रही हैं….लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि ‘ जिसने भी थाली – घंटी बजाई वो मेरे फ्रेंड लिस्ट से जा सकता है ‘ ये कैसा वक्तव्य है ? सबने दोस्ती क्या राजनीतिक दलों के बल पर की थी ? या दोस्ती में राजनीतिक विचारधारा प्रमुख थी ? या सबको भेड़ चाल चलनी थी ? थोड़ा सा दिमाग का इस्तेमाल किजिये और दोस्ती में राजनीति को दरकिनार किजिये ।
” ये दुनियादारी है
इनमें ना उलझिये
अपनों को अपने
करीब ही रहने दिजिये ” ।
( ममता सिंह देवा , 16/06/2021 )