राजनीति के दांव
** कुण्डलिया **
~१~
नेताजी को चाहिए, भव्य सुसज्जित मंच।
और भाषण पर तालियां, मजेदार हो लंच।
मजेदार हो लंच, कार मँत्री पद बंगला।
सत्ता मद में चूर, रहे बौराया पगला।
कह सुरेन्द्र यह बात, करें जीभर लफ्फाजी।
सब चमचों के मध्य, रहें शोभित नेताजी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~२~
नेताजी के शौक हैं, राजनीति के दांव।
और चाहिए हर समय, सुख की शीतल छांव।
सुख की शीतल छांव, जेल हो या घर बाहर।
सभी जगह उपलब्ध, चाहिए नौकर चाकर।
कह सुरेन्द्र यह बात, कभी जब पलटे बाजी।
उसी पक्ष की ओर, डोल जाते नेताजी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)