#कुंडलिया//राजनीति का दाँव
गिरगिट होते बात से , ठाँव बदलते पाँव।
गंदा धंधा एक है , राजनीति का दाँव।।
राजनीति का दाँव , नहीं है सच की कीमत।
झूठा दो से चार , शून्य सच्चे की राहत ।
बने मदारी तेज़ , नचाए जनता झटपट।
नेता ऊँचा आज , रहे जो बनके गिरगिट।
बिजली पानी ख़ूब दें , रोज़गार भी साथ।
नारा सत्तर साल से , नहीं आज़ भी हाथ।।
नहीं आज़ भी हाथ , देखिए खेल निराला।
जनता भूखी रोय , हज़म इनको घोटाला।
चाहे खाएँ देश , नहीं मिटती है खुजली।
जनता देखे बाट , गधा-सींग हुई बिजली।
आँसू आहें देखकर , मौन रहे हरबार।
नेता वादे खोखले , रद्दी के अखबार।।
रद्दी के अखबार , साथ छोड़ो तुम उसका।
गिरवी रोज ज़मीर , पड़ा रहता है जिसका।
लालच अपना भूल , वोट दो बनकर धाँसू।
बंद झूठ का खेल , गिरे नहीं एक आँसू।
देना मत तुम सोचकर , लालच निज का भूल।
वरना झूठा जीतकर , तोड़े सभी उसूल।।
तोड़े सभी उसूल , इसे सहना फिर रोना।
साल चलेगा पाँच , उसी का ज़ादू-टोना।
सुनो खोल तुम कान , काम धीरज से लेना।
जिसकी सच्ची सोच , उसी को मत है देना।
#आर.एस. ‘प्रीतम’