राजनीति और संविधान
ये स्वाभिमान का रूप है या संविधान का नया स्वरूप है,
ये देशहित का क्षुपरूप है या राजनीति का अलग चित्तरूप है।
ये रात अमावस है या स्वाधिकार में तपती धूप है,
मां भारती के उस जवान के लिए क्यों पूरा देश चुप है।
हर चोट को चुप सहकर चुप हो जाना कायरता का सबूत है,
बार-2 धोखे खाकर भी हिम्मत दिखलाना राजनीति का ये कैसा रूप है।
देश बड़ा और धर्म में बंटा यही तो देश का असली कुरूप है,
विकासशील से विकसित भारत का देखो कितना अच्छा प्रतिरूप है।
ये स्वाभिमान का रूप है या संविधान का नया स्वरूप है,
तिरंगे के तीन रंग या उसके भी छल,कपट,लालच तीन त्रिरूप हैं।
आजादी जिस इंकलाब के नारे से आ जाती है
क्यों भगत सिंह की कुर्बानी बेकार हो जाती है,
फांसी पर लटके सेनानी की याद पुरानी हो जाती है
राजनीति फिर उस चन्द्रशेखर को आतंकी कह जाती है।
सूर्यकिरण भी इस धरा पे टकराने से बार-2 शर्मा जाती है
फिर से लहूलुहान घाटी भी बार-बार शर्मिंदा हो जाती है
देख के वर्तमान को आजाद की आंखें अश्रुपूरित हो जाती हैं
सिर्फ देशप्रेम में ही एक सैनिक को घर की याद कभी नहीं आती है।
बलिदानी शहीदों की भी हिम्मत जबाब दे जाती है
दो कौड़ी के नेता के द्वारा देश की अश्मिता बिक जाती है,
नोटों पे चिपके उस राष्ट्रपिता की भी बात जबाब दे जाती है
सपोली राजनीति के कारण एक अबला क्यों विधवा हो जाती है।
ये स्वाभिमान का रूप है या संविधान का नया स्वरूप है,
अनेकता में एकता का रूप है या खंडित होती अखण्डता का एक नया प्रतिरूप है।।