राजनीति और भ्रष्टाचार
राजनीति और भ्रष्टाचार
पहिये हैं एक गाड़ी के ।
सेवा है राजनीति देशभक्तों का
खेल है ये अनाड़ी के ।।
सफेद लिबास में मत जाना,
नजरें धोखा खा जायेगी ।
भ्रष्टता की कालिमा तुझे
पीठ पीछे नजर आयेंगी ।
अब नहीं होते राम विक्रमादित्य
चस्का है सबको बंगला गाड़ी के ।।
जहां लड़ा जाये सत्ता पाने को,
वहाँ समाज सेवा कोसों दूर है ।
एक दूजे की टांग खींचे जिसे पाने को
उस कुर्सी में कुछ बात जरूर है।
खींचातानी, चुगली निन्दा
जायज सब पैंतरे, इस खेल में खिलाड़ी के।।
अनपढ़ अपराधी को समाज दूतकारें ।
पर राजनीति इन्हें सहर्ष स्वीकारें ।
लोकतंत्र की पांव है राजनीति
भ्रष्ट रंग ना चढ़ाओ।
नीतियाँ होती आमजन की ,
जिसको अंतिम पंक्ति ले जाओ।
राजनीति पुष्प है,
भ्रष्टाचार खरपतवार है बाड़ी के।।