राजनीति ओछी है लोकतंत्र आहत हैं।
गज़ल
212……..1222…….212……..1222
राजनीति ओछी है लोकतंत्र आहत हैं।
कोई भी रियासत हो गिर चुकी सियासत है।
ज़ौक मीर ग़ालिब या जान एलिया पढ़ लो,
शायरी मुहब्बत है, शायरी इबादत है।
मंदिरों में मस्जिद में गर किया नहीं सज़दा,
मुफलिसों को दो खुशियां बस यही इबादत है।
हर तरफ है मंहगाई भूख और लाचारी,
लड़ रहा गरीबी से उसमें कितनी हिम्मत है।
छीनकर गरीबों का, हक अगर किया हासिल,
ऐसे नाम रुतबे को कह रहा हूं लानत है।
देश धर्म के खातिर राजनीति से उठकर,
देश पर फिदा होंगे ये वतन से उल्फत है।
साथ साथ मिलकर के गर रहें सभी ‘प्रेमी’,
देश अपना ही यारो इस जमीं पे जन्नत है।
……..✍️ प्रेमी