राजनीति: अनेक संदर्भ
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धार्मिक।
हिम के शिखर से उतार कर।
चट्टानों से चोट खिलाकर।
औषधयुक्त पवित्र जल गंगा का
सुदूर हरिद्वार से
और काशी से
स्वर्ण-कलश में,चढ़ाकर कंधे पर।
मँगवा लिया देवघर,
देवाधिदेव, काला पत्थर।
: साहित्यिक।
अभिजात्य नायक,
आधुनिक,’एरिस्टोक्रेट’।
प्राचीन लिपि में आलेखित,
प्राचीन शब्दों के
यथावत अर्थों को,देता है समीकरण
नवीन।
नायक को गांधी,सुभाष,अंबेडकर या
किसान-पुत्र से कर देता है आभूषित।
या दूषित,स्यात्।
बुनकर शब्दों का भभ्रजाल।
इसे कहते हैं,साहित्यिक कमाल।
: ऐतिहासिक
संग्राम,राजनीति का रहा है सदियों से,
महत्वपूर्ण अंग।
स्थगन प्रस्ताव नागरिकता का।
न उंगली,न भृकुटी
न तने हुए नेत्र,ललाट।
न कहीं उठा कोई प्रश्न चिन्ह।
विनाश ही रहा है
राजनीति का ऐतिहासिक संदर्भ।
अब तो इतिहास बदल जाए।
विवेक हमारा सँभल जाए।
सभी होने का दावा तो है।
:आर्थिक।
“जियो और जीने दो”।
लेन-देन (डालरों में)।
सवा लाख रुपये का उच्चारण।
पूजा की पूर्णाहुति पर,
जैसे सवा रुपये का संभाव्य दक्षिणा।
तय हुआ स्कूल,शिक्षा।
अगर छिना तो छिना
तुम्हारा।
उनके वचन,नीति व रीति।
कैसे कम होगा!
विरासत का दक्षिणा।
: सामाजिक
तमाम शैक्षणिक योग्यताओं से श्रेष्ठ,
जैसे हो गया है ब्राह्मण योग्यताओं का।
समर्थन,उठाकर हाथ।
विरोध,पीटकर मेज।
करते हैं ये तथाकथित राजनीति के आचार्य।
तब
बदल जाता है व्यक्ति का समाज।
सामाजिक स्तर।
बदल जाता है भूगोल,
भौगोलिक पता।
इतिहास भी बदल जाता है।
बुद्धूआ से बुद्धदेव पूर्वज।
उसकी सारी सामाजिक संरचना,
जन-मानस में,उदाहरण बनकर
लिपट जाता है।
जैसे,
चन्दन के वृक्ष से,नाग,नाग,नाग।
समाज में लग रहा है,
आसमान तक उठता हुआ आग,आग,आग।
: कुर्सी (सत्तात्मक)
कुर्सी का राजनीति से गहरा है लगाव।
इनका कभी होता नहीं दुराव।
राजनीति है तो कुर्सी आपका।
कुर्सी है तो राजनीति आपके बाप का।(बुरा न मानें)
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15/8/81 की कविता 27/9/21 को पुनर्लिखित