राजनीतिक गलियारा
–राजनीतिक गलियारा—-
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राजनीति का घिनौना खेल
हो गया पूर्णता आज बेमेल
जन प्रतिनिधि थे जनसेवक
बदले प्रारुप में हैं धनसेवक
राजनीति बदली दिशा-दशा
सच में आज है बहुत दुर्दशा
बदले हैं राजनीतिक मायने
नहीं रहे हैं पहले जैसे आइने
जनता की जो करते थे सेवा
धनसंचय कर,करें निज सेवा
पहनते हैं सफेद साफ कपड़ें
दागी छवि ढकते नहीं कपड़े
हद से भी ज्यादा होते ढोंगी
गिरगिट सा रंग बदलते ढोंगी
झूठी बातों का सदैव हैं खाते
बात पलटने में देर ना लगाते
चुनाव से पहले हैं कुछ ओर
चुनाव बाद बदल जाते छोर
धर्म,जाति के दंगे हैं करवाते
भाई को भाई से हैं लड़वाते
सेंकते हैं राजनीतिक रोटियाँ
कर देते मानवता की बोटियाँ
राजनीतिक लाभ सदा उठाते
पल में कत्लेआम हैं करवाते
जो जितना ज्यादा गिर जाता
अच्छा राजनीतिज्ञ बन जाता
वोट शक्ति पर मारता है चोट
नीति -नीयत में रहता है खोट
समाज में फैलाएं जात पात
निज की कोई नहीं जात पात
गाँव हो या फिर हो कोई शहर
घोलते हैं नफरत का ही जहर
राजनीति हर बार रही जीतती
सुखविंद्र जनता सदा है हारती
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली ( कैथल)