राजनीतिकरण
लघुकथा
शीर्षक – राजनीतिकरण
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पार्टी के दफ्तर में कार्यकर्ताओं की भीड़ “पार्टी जिन्दाबाद” के नारे लगा रही थी l अनेक क्षेत्रीय नेतागण एमएलए पद की टिकट की जुगत में लगे हुए थे। सब अपनी अपनी दावेदारी को पेश कर रहे थे l l एक टिकट के लिए लगभग बीस दावेदारी…. यानी एक अनार सौ बीमार ।
” सर, ये टिकट तो मुझे ही मिलनी चाहिए, मैंने बहुत ही अच्छे कार्य किये हैं अपने क्षेत्र में, पूरी जनता मेरे साथ है मेरी जीत निश्चित है” – निवर्तमान विधायक रामलाल ने पार्टी प्रेसीडेंट से कहा l
” लेकिन रामलाल, पार्टी का फैसला है कि अबकी बार टिकट जगनमोहन को दिया जाता है “- प्रेसिडेंट ने कहा l
” उस गुंडे को? ,,,,, उसे टिकट देकर आप जनता के साथ धोखा कर रहे हैं “- राम लाल ने कहा ।
” धोखा? ,,, धोखा तो तुमने दिया है रामलाल, ये पार्टी तुम्हारी ईमानदारी से नहीं चलती… पार्टी ने तुमसे कितनी बार कहा कि अपने क्षेत्र से पार्टी को बीस करोड़ का चंदा दो, लेकिन तुम्हें तो ईमानदारी और शराफत की बीमारी लग गई इसमें हम क्या कर सकते हैं… जगन को देखो उसने पच्चीस करोड़ का चंदा टिकट मिलने से पहले ही पार्टी को दिया… ”
” मै समझ गया सर, इस पार्टी पर भी अब धन-पिशाचों का अधिकार हो गया है,,,, बधाई हो, नहीं सुहाती ऐसी राजनीति,,, नहीं करनी ऐसी समाज सेवा,,,,, “–
दफ्तर से बाहर निकलते हुए रामलाल देख रहा था आँखों में सपने संजोये हुई जनता को और कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए उस जगत रूपी अंधकार को….
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राघव दुबे
इटावा
8439401034