राजनिती (कुण्डलियां)
राजनिती
1.
गंदा हो गया देखो, राजनीति का खेल।
नेता बनता हैं वहीं, जो जाता हैं जेल।
जो जाता हैं जेल, वही चुनकर के आता।
ना लायक भी यहां, सदन मंत्री बन जाता।
फिर सभी मिलकर के, करे हैं गोरख धंधा।
कहें राम कविराय, धंधा हो गया गंदा
2.
सत्ता हथियाने हेतु, करते लाख उपाय।
वक्त पड़ने पर सारे, सबको बाप बनाय।
सबको बाप बनाय, बला सबकी ले लेते।
वक्त बित जाने पर, सबको दगा हैं देते।
पैंतरे में इनके, सभी खा जाते गच्चा।
करते जतन अपार, सभी पाने को सत्ता।
3.
मंत्री बनते ही सभी, जन को जाते भूल।
मंत्री बनके लोग को, कहें चरण की धूल।
कहे चरण की धूल, साथ ना उनका देता।
काम करने के लिए, उनसे घूस हैं लेता।
कहर ढाते हैं सब, बनकर यहां पर तंत्री।
समझे खुद को खुदा, बनकर यहां पर मंत्री।
स्वरचित
रामप्रसाद लिल्हारे “मीना “