राजनितिक रंग-रभस
राजनिति के रंग-रभस में
नेताजी फेर भेला बताह।
अपने हाथे पीठ ठोकै छथि
अपने मुंह में वाह रे वाह।।
केस में ललका डाई करौने
मोंछ लगौने करिया रंग।
भ्रष्टाचार के तिलक-ठोंप कऽ
हमरा सिखबैथि जीवनक ढंग।।
पांच-बरिस बीति गेल मुदा नहिं
कहियो छनि जनता सं भेंट।
जहिया कखनो मौका भेंटलनि
जईड़-भीड़ा कऽ कटलनि घेंट।।
नरेगा-मनरेगा बनि गेल
नेताजी के कोठी में।
रौह-बुआर आ छागर मारथि
जनता तिरपित पोठी में।।
जल-नल में नहिं जल अबैया
रोड तोइड़ ई केलैनि नाश।
नाला-नालीक बात नहिं पुछियौन
कि यौ?अहिना हेतै विकास।।
माल लुटि कऽ ढ़ेकरि रहल छथि
हम जनता के बब्बर शेर।
हमरा बिन कि काज चलत यौ?
गप्प लि’अ ने ढ़ेरक-ढ़ेर।।
ईमानदारीक ढ़ोग रचै छथि
बाघ पहिरने बकरीक छाल।
मुंह-खून लागल छनि एखनो
चलय छथि राजनीतिक चाल।।
हाथ जोड़ि कऽ फेर अबैए छथि
कहय छथि हमरो रखबै ध्यान।
पछिला फेर जे गलती भेलै
सबटा अहिबेर हेतैय निदान।।
बहुत ठक’लियै आब नहिं ठकियौ
लोक बुईझ गेल सबटा बात।
नेताजी के नेत ठीक नहिं
अहिबेर छोड़ब हिनकर गात।।
हम’विवेकी’कोना नहिं बाजब?
कलम संऽ करबे-करबैन चोट।
मतदाता मालिक संऽ अरजी
सुईझ-बुईझ कऽ दियौन वोट।।
✍️बिन्देश्वर राय’विवेकी’