राजधानी-शताब्दी
राजधानी-शताब्दी रेल गाड़ियां ए सी
न रही वो जो पहले थी हुआ करती,
क्रेज शान शौकत थी इनकी सवारी
नर्म बिस्तर टावेल फूड भी सर्व करती।
जीहजूरी मे अटेंडेंट लिनेन बाॅय क्लीनर
वी आई पी वाली फीलिंग हुआ करती,
करोना ने सब छीना भाड़ा हुआ न कम
नाम के आगे स्पेशल लगा घूमा करती।
याद आया वो थ्री टायर स्लीपर क्लास
चादर लुंगी फुलाने को तकिया साथ रहती,
लगेज रख बर्थ पर आ सजाते थे सेज
गर्मी लगी कपडे उतरे सीटियां बजा करती।
घर जैसा लुत्फ बेगाने बोलते बतियाते
हंसी मजाक मंजिल आसान रहा करती,
कम खर्च पूरा मजा बन जिल्ले-इलाही
फिर कब हो सफर ये हसरत रहा करती।
यही हाल अब राजधानी शताब्दी का है
पर जेब ढीली ज्यादा हुआ करती,
ए सी है गर्मी नही भाई-चारा ठंढा हो गया
यात्री आंखें एक दूजे को घूरा करती।
मांगने पर भी मदद नही मिलती
हमसफर नही जैसे दुश्मनी रहा करती,
पढ़ सको तो पढ़ लो इनकी नजरें
क्यों बने हमराह यही कहा करती।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297