राजकुमारी कार्विका
इतिहासों के पन्नों पर लगी धूल हटाता हुँ।
चूड़ी व पायल की छम छम नहीं सुनता हूँ।
विश्व विजेता भी डर कर युद्ध से भागता है।
कार्विका की चंडी सेना की गाथा सुनता हूँ।
भारत में जब युद्ध का घना अँधेरा छाया था।
सिकंदर की सेना ने आतंक बहुत मचाया था।
नारियों के साथ दुष्कर्म व राज्य लूटते आये थे।
तब विदुषी नारियों ने युद्ध करने का ठाना था।
मेहंदी के हाथों से लहू सनी तलवार उठाई है।
लगा की कोई टिड्डी दल बाजों से टकराया है।
लाखों की सेना कुछ हजार नारी शक्ति टकराई
राजकुमारी ने बचपन की सहेलियों के साथ सेना बनाई है।
सिकंदर ने पहले सोचा “सिर्फ नारी की फ़ौज है
मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे पहले सेना का दस्ता भेजा है (25000)
सिकंदर का एक भी सैनिक ज़िन्दा वापस नहीं जा पाया है
घायल हुई वीरांगनाएँ पर मृत्यु किसी को छुना पायी थी। (मात्र 50)
फिर सिकंदर ने 5०,००० का दूसरा दस्ता भेजा था।
उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बनाया था।
युद्धनीति से राजकुमारी कार्विका ने खुद सैन्यसंचालन किया
सेना तीन भागो में बंट कर सिकंदर की सेना को परास्त किया था।
तीसरी और अंतिम दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया था।
नंगी तलवारों से कार्विका ने अपनी सेना का शौर्य दिखाया था।
150 लाख से मात्र 25 हजार की सेना ही जान बचा पायी थी।
सिकंदर को अपनी सेना सहित लेकर सिंध के पार भगाया था।
लीलाधर चौबिसा (अनिल)
चित्तौड़गढ़ 9829246588