‘राग और रोग’
बन जाऊँ जो पूरिया धनाश्री ,
सुकून की तुम्हें नींद दूँ ।
हो जाऊँ जो मालकोश तो ,
तनाव से तुम्हें मुक्ति दूँ ।
शिवरंजनी से सुखद अनुभूति ,
मोहनी बन आत्मविश्वास दूँ
नियंत्रण करूँ रक्तचाप भैरवी से ,
क्रोध अहीर भैरव से शान्त करूँ ।
कर्क रोग से घिर जाओ जो ,
राग गुणकली मैं बन जाऊँ
हो जाये गर मस्तिष्क पीड़ा ,
मैं जैजवंती बनकर उपचार करूँ ।
ज्वर पीड़ा जब सताए तुमको ,
सेवा दरबारी कान्हड़ा बन मैं करूँ
कभी तुम खुद को असहज, एकान्त पाओगे तो,
स्मरण करना मुझे ……
मैं वेदों में हूँ , मैं प्रकृति में हूँ , मैं ही हर जीव में हूँ ,
मैं ही राग रूपी औषधी , मैं ही नाद ब्रह्म संगीत हूँ ।।
©® – अमित नैथानी ‘मिट्ठू’ (अनभिज्ञ)