रागिनी
देखा उसने मुड़कर,
पर पीछे नहीं,आगे।
कर दिया भ्रमित,
पानी की दो बूँदे।
बहे थे पर गगन से नहीं,
नैनो के अंबर से ।
ओस की बूंँदे पड़ी ,
पर कमल के पुष्प में नहीं ।
ह्रदय के कमल पर,
निश्छल निष्कपट ।
महक उठा मन ,
खिल गया मुख ।
देखा उस सजीव ,
मन-मोहित रूप को ।
कर रहा था विनय,
मुझे से नहीं ईश्वर से ।
करना तू रक्षा,मेरी नहीं ,
उस जाते हुए प्रियजन की ।
#रचनाकार- बुद्ध प्रकाश ।