रह-रहकर वही बात…
अन्तर्मन को कुरेदती रही
रह-रहकर वही बात!
नहीं हैं भाव गहरे
लेकिन कुरेदते-कुरेदते
हो गये घाव बहुत गहरे!
पहुँचना है उत्तुंग शिखर तक
पथभ्रष्ट भी होंगे
कँटीले रास्तों का छोर भी होगा
मार्ग में आये रोड़ो से नहीं घबराना
दुनियाँ का सबब है
बिना रुके चलते जाना है
यही विश्वास मन में लाना है!
निश्चित है फिर शिखर तक पहुँचना!
जीत फिर तुम्हारी ही होगी!
मन में कुरेदेगी फिर वही बात
लेकिन घाव नहीं भाव
गहरे होंगे! इस बार….
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)