रहो प्रेम से यार
अर्थशास्त्र
*******
श्रम से मजदूरी मिले, भाड़ा भवन दिलाय।
पूँजी दे बस ब्याज ही, साहस भाग्य जगाय।
साहस भाग्य जगाय, कर्म फिर भी प्रधान है।
साहस बिना न खेल, यही विधि का विधान है।
कह ‘आकुल’ कविराय, भाग्य खिलता परिश्रम से।
साहस से मिल जाय, नहीं मिलता जो श्रम से।
ग्राहक राजा
********
मुर्गे से लेंं सीख सब, चुनता मल से बीज।
व्यापारी वह ही सफल, रक्खे जो खेरीज।
रक्खे जो खेरीज, न ग्राहक वापिस जाये।
ग्राहक राजा जान, लौट के कब आ जाये।
कह ‘आकुल’ कविराय, कला सीखें गुर्गे से।
रहे सदैव सचेत, व्यस्त दीखें मुर्गे से।
रहो प्रेम से यार
************
चल जाये इक बार जो, तीर, जीभ, तलवार।
वीर, संत, ज्ञानी भिड़ें, ना निकले कुछ सार।
ना निकले कुछ सार, सभ्यता नष्ट हुई हैं।
युग बदले हर बार, जहाँँ ये भ्रष्ट हुई हैं।
रहो प्रेम से यार, जेवरी भी जल जाये।
चलें न बस ये तीन, काम सब का चल जाये।