रहे हरदम यही मंजर
रहे हरदम यही मंजर
तेरा कंधे पे सर रखकर के, शुकराना अदा करना,
रहे हरदम यही मंजर, मुझे कुछ याद ना रखना ।
घड़ी वो थी मुबारक, आपने बोला था शुक्रिया,
एक बार बोले आप, खुदाया सौ बार शुक्रिया,
इसी तरह नज़र-ए-इनायत हम पर तुम सनम रखना,
रहे हरदम यही मंजर, मुझे कुछ याद ना रखना ।
माना पल सुहाने आते हैं ऐसे, पल या दो-पल,
करो न वक़्त को बर्बाद, पल ये जायें ना निकल,
ऐसे वक़्त की खुशबू को, पन्ने में दबा रखना;
रहे हरदम यही मंजर, मुझे कुछ याद ना रखना ।
अभी जाते हो तो जाओ के फिर, आओगे करो वादा,
मेरे हौसले जवान हो, बन गए हैं इरादा,
भूल कर सब, कयामत एक ढ़ाने की फ़िकर रखना;
रहे हरदम यही मंजर, मुझे कुछ याद ना रखना ।
(c) @ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”