#कुंडलिया//यथार्थ
प्यासा मन यश का हुआ , नोटंकी की टेक।
नायक सम हैं चित्र में , कर्म नहीं शुभ एक।।
कर्म नहीं शुभ एक , चलन हुआ अरे कैसा।
नारे भाषण ख़ूब , करे नहीं कहें जैसा।
सुन प्रीतम की बात , पकड़ सच्चाई पासा।
सच का जल हो एक , रहे क्यों मन फिर प्यासा।
औरत का किरदार है , देवी सम साकर।
शक्ति लिए हर रूप में , रहे किसी आकार।।
रहे किसी आकार , करो तुम मान हमेशा।
इसके बिन तुम गौण , यही सच्चा संदेशा।
सुन प्रीतम की बात , असफल बनेगी चाहत।
जब तक देती साथ , नहीं जीवन में औरत।
#आर.एस.’प्रीतम’