रहें सलामत वो
ठाने रहते हैं सदा अपनों से अदावत वो।
ढाते हैं सब पे सितम बनके इक क़यामत वो।
लिहाज़ है ही नहीं उनको बड़े छोटे का-
हर घड़ी ढूंढते हैं मौका -ए-ज़लालत वो।
करके गुस्ताखियां रखते नहीं नदामत वो।
अपने ही लोगों की करते सदा खिलाफ़त वो।
दिल दुखाते हैं चोट वो यकीं पे करते हैं-
फिर भी देता हूं दुआएं रहें सलामत वो।
रिपुदमन झा “पिनाकी”
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक