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22 Jul 2020 · 1 min read

रहा न वो लाखों का सावन

रहा न वो लाखों का सावन
नहीं सुकोमल पहले सा मन
बदल गईं हैं रीत पुरानी
सूना है बाबुल का आँगन

वो पेड़ों पर झूले पड़ना
कजरी गाना पेंगे भरना
सखियों के सँग हँसी ठिठोली
सब कुछ था कितना मनभावन
रहा न वो लाखों का सावन

भैया सँग मैके आते थे
बाबुल कितना दुलराते थे
मम्मी के आंचल में छिपकर
जी लेते थे फिर से बचपन
रहा न वो लाखों का सावन

होती थी साजन से दूरी
भाती थी पर वो मजबूरी
आती थी जब उनकी पाती
भीग प्रेम से जाता था मन
रहा न वो लाखों का सावन

आज जमाना बदल गया है
शुरू हुआ अब चलन नया है
हक बहनों ने तो है पाया
मगर खो गया वो अपनापन
रहा न वो लाखों का सावन

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 6 Comments · 541 Views
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