रहस्य
लघुकथा
रहस्य
राज,भेद, मर्म या यूं कह लीजिए पहेली
सुशील प्रतिदिन जब भी ऑफिस से घर आता तो शैलजा तुरंत दरवाजा खोलती, हाथ से सामान लेती रखती और मुस्कुराते हुए चाय- पानी पिलाती। अपनी प्यारी- प्यारी बातों से सुशील की सारी थकान दूर करती है।एक दिन शैलजा भागवत की कथा सुनकर आई ,उसके बाद वह चुप- चुप रहने लगी ।कुछ दिन बीत गए सुशील सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर हुआ क्या है? उसने अकेले में शैलजा को बड़े प्यार से पूछा आखिर गुमसुम रहने का राज क्या है? इस पर शैलजा बोली, मैं कौन हूं, कहां से आई हूं, आखिर जाना कहां है? हमारे भीतर कौन बसा है, हमारी आंखों की नींद कहां बसी है?
इतने सवाल सुनकर सुशील के होश उड़ गए। उसने शैलजा से पूछा इतने सवाल कहां से लाई? यह तो भौतिक शरीर के भीतर का बहुत बड़ा रहस्य है। देखो शैलजा जितना मुझे आता है मैं उतना तुम्हें बताता हूं।
इस नश्वर संसार में हमें अपने पूर्व जन्मों के किए कर्मों को भोगने के लिए आना पड़ता है, जब ईश्वर द्वारा दिया गया काम समाप्त हो जाता है तब हमें वापिस ईश्वर के पास जाना पड़ता है।न तुम, तुम हो, न मैं ,मैं हूं ,यह रिश्ते नाते सब यही के बंधन है। प्रत्येक जन्मों में विभिन्न देह धारण करनी पड़ती है और ईश्वर द्वारा प्रदत्त कार्य करने के पश्चात हमें जाना पड़ता है।हमारे स्थुल शरीर के अंदर एक सूक्ष्म शरीर है जिसे हम आत्मा कहते हैं। शरीर से आत्मा निकलते ही वह परमात्मा की ओर गमन करती है।निंद्रा हमारी तंद्रा में रहती है जब हम किसी के ध्यान में पूर्ण रूप से खो जाते हैं जब हमारा मस्तिष्क उस ध्यान के चलचित्र में खोकर असीम आनंद प्राप्त करता है और देह की सुध -बुध नहीं रहती तो लोचन पलकों पर निंद्रा का आगमन शुरू हो जाता है।
शारीरिक श्रम के अधिक थकान से जब देह के तंत्र शिथिल हो जाते हैं तब भी निद्रा रानी का आगमन होता है।
अध्यात्म रूप से जहां भगवान का गुणगान हो रहा हो ,अच्छी बातों की चर्चा हो रही हो निद्रा की देवी स्वत: दौड़ी आती है।वैश्यालयों में, निंदा -चर्चा में ,जुआ घरों में निद्रा देवी कभी नहीं आती। इतना कहकर सुशील ने शैलजा से कहा अब तो मेरी हृदयेश्वरी प्रियतमा मुझे भी निद्रा देवी ने जकड़ लिया है। इस पर दोनों जोर से हंस पड़े।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश