‘रहस्य’
“”मेरे द्वारा देखे गए स्वप्न पर आधारित “”
मैं जहां जा रहा था रास्ते में बहुत भीड़-भाड़ थी।
लोग आऔर जा रहे थे ठंडी कड़ाके की पड़ रही थी सभी आने और जाने वाले गर्म कपड़े पहने हुए थे तथा कुछ लोग कंबल भी लपेटे थे।
ठंडी का महीना था आसमान में सूर्य नहीं दिखाई दे रहे थे ,कई दिनों से धूप भी नहीं हो रही थी। लोग ठिठुरे और सहमे हुए मगर उत्साह से जा रहे थे ।आगे किसी बाबा के मजार पर मेला लगा हुआ था जब हम लोग उस स्थान पर पहुंचे ,वहां बहुत ही भीड़ थी। दुकाने लगी थी तथा समान बेचने वाले लोगों को अपनी तरफ बुला रहे थे कुछ लोग सामान खरीद रहे थे कुछ लोग जगह जगह बैठ कर आराम कर रहे थे ,तथा कुछ खा-पी रहे थे।
कुछ लोग घूम रहे थे। जिस स्थान पर मेला लगा था वह मिट्टी का बहुत ही ऊंचा टीला था उसी टीले पर मेला लगा था टीले के बीच में बाबा का मजार था जिस पर लोग चादर चढ़ा रहे थे और मत्था टेकते तथा दुआएं मागते, चारों तरफ घूमने के बाद मैं एक ऐसे स्थान पर पहुंचा जहां पर टीला थोड़ा उचा था। वहां बड़ी-बड़ी घासे तथाछोटे-छोटे झुरमुट नुमा पौधे थे । मैं उसे पार कर दूसरे तरफ जाना चाहता था। वहां कोई आदमी भी नहीं थे। बिल्कुल सुनसान जगह था ,यह मेला से थोड़ा दूसरी तरफ था
मैं जैसे ही टीले के ऊपर चढ़ता हूं मेरा पैर टिले में धंसने लगता है मैं परेशान हो जाता हूं, पैर निकालने की बहुत ही कोशिश करता हूं लेकिन पैर और नीचे धसने लगता है ,मैं बिल्कुल डर जाता हूं और हाथ और पैर बाहर निकालने की कोशिश करता हूं, लेकिन निकल नहीं पाता ,कुछ ही देर में मेरा पूरा शरीर टिले के अंदर चला जाता है ,कुछ दूर गहराई में जाने के बाद मैं एक स्थान पर गिरता हूं ,और सोचता हूं कि मैं कहां आ गया ।बिल्कुल डरा और सहमा ।
जब आंखे खोलता हूं तो मैं आश्चर्य में पड़ जाता हूं ,जिस स्थान पर मैं बैठा था वह एक घर था चारों तरफ दीवारें थी दीवारें भी ऐसे जिस पर बहुत ही सुंदर नक्काशी किया गया था पश्चिम की तरफ देखता हूं तो मुझे एक मस्जिद दिखाई देता है मस्जिद के आगे एक एक आदमी बैठे थे ,जो पूरब की तरफ मुंह किए थे उनके उत्तर साइड में 5 से 6 ब्याक्ति एक पंक्ति मेंबैठे थे ।तथा दक्षिण साइड में भी 5 से 6 ब्यक्ति एक लाइन मे बैठे थे ।
सभी लोगों के दाढ़ी लंबे और बाल भी लंबे थे तथा कुर्ता- पजामा पहने थे ,ऊपर से एक कोट भी पहने थे ,तथा सर पर टोपी थी। सबके सामने थाली में भोजन रखा हुआ था, तथा एक बर्तन में पानी रखा था।
मैं आश्चर्य से सब को देखने लगा तभी मस्जिद के सामने बैठे व्यक्ति ने कहा ने कहा बंदे तुम तो बहुत ही नेक समय पर यहां पर आये हो ।चलो तुम भी लाइन में बैठ जाओ ,और मैं दक्षिण वाली लाइन में बैठ गया ,वह हाथ थोड़ा ऊपर उठाये जैसे दुआ देते हैं, और मेरे सामने भी खाने की एक थाली तथा एक बर्तन में पानी आ गया ।
और उन्होंने इशारे से सब को भोजन करने के लिए कहा ।हम लोग खाना खाए बहुत ही स्वादिष्ट खाना था , खाने के बाद वह सब को दुआए दिए ,और मैं बाहर आ गया ।