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23 Sep 2021 · 1 min read

रहस्य

जैसी भावना
वैसी गति,
शुद्ध कल्याणकारी
अशुद्ध विनाशकारी।
भावना होती जीवन का रहस्य
फूल खुशबू
भोजन स्वाद की सुगंध
सडन बदबू
जैसी प्रकृति वैसी भावना से,
उत्पन्न कर्म चहुँ दिश फैलते
क्रिया का कर्म मे परिवर्तन
भावना से ही होता।
अन्यथा कर्म मात्र क्रिया ही होता,
प्रभाव क्षणिक।
कर्मों के रूप मे भावनाएं ही सम्मुख आती,
राग द्वेष से किए कर्म
गहराई से जुडते,
विद्रूप छवि के साथ
जीवन भर जीते।
भावरहित विचार,
प्रभावहीन निरर्थक।
भावना से संवेदनशीलता
अभाव मे पाषाणतुल्य,
जिस भाव से जैसा कर्म
वैसा ही फल हम पाते।
ये है रहस्य
परिष्कृत करो भावनाओं को
इन्हे बनाओ शुभ
तभी सुनेंगे प्रभु प्रार्थना,
प्रभावी होगे कर्म
शुद्ध सरल पवित्र होगी आत्मा।

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
?
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 311 Views
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