रहस्यमय तहखाना – कहानी
एक गाँव में एक किसान परिवार रहता था | यादव जी के इस परिवार में कुल सात सदस्य थे | यादव जी के माता – पिता , उनकी पत्नी सुशीला , बेटी सीता , बेटा सुजान और एक विधवा बहन रामकली | परिवार के सभी सदस्य मिलकर खेती किया करते थे किन्तु उस परिवार में एक सदस्य था सुजान जिसे काम करने से परहेज था | जो घर में सबसे छोटा था | जिसकी उम्र करीब 15 वर्ष थी | पढ़ाई से भी इसका कोई विशेष नाता नहीं था | रो – धोकर वह किसी तरह दसवीं तक तीसरे दर्जे से पास हो गया था | सुजान के माता – पिता ने सोचा कि सुजान पढ़ नहीं पाया तो कोई बात नहीं पर वह खेती के काम में तो हाथ बटाये |
घर के सभी सदस्य पूरी कोशिश करते रहे कि सुजान भी घर के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे किन्तु उस पर तो किसी बात का कोई असर नहीं होता था | सारा दिन दोस्तों के साथ मस्ती और जब भूख लगे तो घार वापसी | कई बार सुजान को झिडकियां दी गयीं पर | सुजान भी अपने घर वालों के रवैये से परेशान था | उसका मन ही नहीं लगता था किसी काम में |
अब सुजान 22 वर्ष का हो गया था | वह अपने घर वालों से अपनी शादी के लिए कहता पर घर वाले उसकी बात अनसुनी कर देते | उसे इस बात का ताना दिया जाता कि जब तक वह खेती के काम में हाथ नहीं बटायेगा तब तक उसकी शादी नहीं हो सकती | एक दिन घर वालों कि बात से तंग होकर सुजान घर से दूर जंगल में चला गया | जंगल में एक पुरानी हवेली थी | सुजान उसी हवेली में चला गया | जब वह भीतर गया तो उसने देखा कि हवेली में नीचे कि ओर ख़ुफ़िया सीढ़ियाँ हैं वह यह सोचकर आगे बढ़ गया कि शायद यहाँ कोई खजाना होगा | सीढ़ियों से नीचे जाने पर उसे एक तहखाना दिखाई दिया | उस तहखाने में जैसे ही उसने पैर रखा उसे एक आवाज सुनाई दी |
आओ सुजान | क्या हुआ घर वालों से परेशान होकर यहाँ आये हो | खजाना तो यहाँ है पर वह तुम्हें मिलेगा नहीं |
सुजान ने कहा – क्यों ?
आवाज आई – क्योंकि यह खजाना मेहनती व्यक्ति के लिए वर्षों से इन्तजार कर रहा है |
सुजान ने कहा – मुझे यह खजाना चाहिए | किसी भी कीमत पर |
आवाज आई – तुम्हें यह खजाना मिल सकता है पर ……………. |
सुजान ने कहा – पर क्या !
आवाज आई – इस खजाने के लिए तुम्हें अपने जीवन के तीन माह खर्च करने होंगे और जैसा मैं कहूँगा करना होगा |
सुजान ने कहा – इस खजाने को पाने के लिए मैं कुछ भी करूंगा |
आवाज आई – तो ये जो बोरी तुम्हारे पास रखी है इसे लेकर घर जाओ | इसमें जो सौंफ के बीज हैं इन्हें अपने खेत में बो दो | इसके बाद तुम फिर से एक महीने बाद मुझसे आकर मिलो |
सुजान खुश हो गया | सौंफ के बीज की बोरी उठाई और घर चल दिया |
घर पहुंचकर उसने सौंफ की खेती की इच्छा जताई | घर वालों ने सोचा चलो एक बार इसकी भी सुन लेते हैं | चलो किसी तरह ये खेती करने को तैयार तो हुआ |
सुजान ने अगले दिन खेत में सौंफ के बीज बो दिए और एक महीने बीतने का इन्तजार करने लगा | इसी बीच सौंफ के पौधे जमीन के बाहर आ गए | महीना भी पूरा हो चला |
अगले दिन सुजान उसी हवेली की ओर चल दिया | हवेली पहुंचकर वह उसी तहखाने में जा पहुंचा |
आवाज आई – आओ सुजान | क्या सौंफ के बीज तुमने बो दिए अपने खेत में ?
सुजान बोला – हाँ | उसके नन्हे – नन्हे पौधे भी निकल आये हैं | अब बताओ आगे क्या करना है ? ताकि जल्दी से जल्दी मैं इस तहखाने के खजाने को पा सकूं |
आवाज आई – जो नन्हे – नन्हे पौधे निकल आये हैं खेत में उनकी गुड़ाई करो और ओरगेनिक खाद डालो उसमे | और हां एक बार हिसाब से पानी भी दे दो | फिर दुबारा मुझसे आकर एक महीने बाद मिलो |
सुजान अच्छा ठीक है | कहकर घर आ गया | अगले दिन वह खेत पर गया और जैसा उसे बताया गया था वैसा उसने किया | और पहले की तरह वह महीना बीतने का इंतज़ार करने लगा |
महीना बीतते तक पौधों में सौंफ के सुन्दर फूल खिलने लगे | पौधों पर फूल देखकर सुजान बहुत खुश हुआ |
महीना बीता और सुजान फिर खजाने की लालच में वापस उसी तहखाने में जा पहुंचा |
आवाज आई – आओ सुजान | तुम्हारे खेत में सौंफ की फसल कैसी हो रही है |
सुजान बोला – फूल आ गए हैं और जल्दी भी सौंफ लग जायेगी | अब बताओ आगे क्या करना है ?
आवाज आई – अब तुम एक बार खेत में अच्छे से देख लो कि कहीं खरपतवार न लगी हो | यदि हो तो उसे निकाल फेंको | फिर मुझसे मिलने एक महीने बाद आना और हाँ वो सौंफ की फसल से होने वाली आय का हिसाब भी लेते आना |
सुजान बोला – ठीक है | सुजान वापस घर आ गया | अगले दिन से वह खेत में हुई खरपतवार को निकालने में जुट गया | फसल पकने को आ गयी | फसल को उसने जब बेचा तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि इस फसल से इतनी कमाई भी हो सकती है | उसे लगा जैसे उसे खजाना मिल गया |
अगले दिन हिसाब निकालकर वह वापस उसी तहखाने में जा पहुंचा |
आवाज आई – कहो सुजान | कितनी कमाई हुई सौंफ की खेती से |
सुजान बोला – बता नहीं सकता | जैसे मुझे खजाना मिल गया |
आवाज आई -बिलकुल सही सुजान | तुमने सही पहचाना | जिस खजाने कि लालच में तुम यहाँ आये थे वो खजाना तो तुम्हें मिल गया |
सुजान बोला – नहीं नहीं | मुझे तो इस तहखाने का खजाना चाहिए |
आवाज आई – बेटा सुजान | इस तहखाने में कोई खजाना नहीं है | तुम्हारे भीतर बैठे आलस को हमने तुम्हारे मन से हटा दिया | तुम्हारी मेहनत ही तुम्हारा असली खजाना है |
सुजान का चेहरा उतर गया | अचानक उसकी पीठ पर किसी ने अपना हाथ रखा | सुजान डर गया | पीछे मुड़कर देखा तो अपने पिताजी को खड़ा पाया |
उसके पिताजी ने कहा कि हमने बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं कर पाए | यह मेरी अंतिम कोशिश थी जिसमे तुम्हारे सहयोग से मैं सफल हुआ |
सुजान अपने पिताजी के पैर पर गिर पड़ा और पिछली बातों के लिए माफ़ी मांगने लगा |
पिता – पुत्र घर की ओर चल दिए | आज सुजान को खुद पर गर्व महसूस हो रहा था | गाँव के दूसरे लोग भी सुजान से सौंफ की खेती के लिए सलाह लेने आने लगे |
राज्य सरकार की ओर से सुजान को सौंफ की खेती के प्रचार – प्रसार के लिए सर्वश्रेष्ठ कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया गया |