” रहस्मयी आत्मा “
” रहस्मयी आत्मा ”
कलम चल पड़ी है कागज पर उकेरने कविता
आत्मा पर लेकिन क्या लिखूं समझ से परे है
शुरू से सुनते आए हम सभी आत्मा अमर है
कैसे हां भरूं लेकिन मैं, मैंने देखी तो नहीं है,
एक शरीर के मरने पर दूसरे शरीर में जाती
मरती नहीं बस तन का आदान प्रदान करती
तांत्रिक साधु ऋषि मुनि चाहे कहूं तप योगी
राग अलापते हैं मेरे आस पास यहीं कहीं है,
मंदिर में मस्जिद में या यह रहती शमशान में
इंसान में भगवान में या रहती कब्रिस्तान में
सार इसका कोई आज तक नहीं जान पाया
जिसने जहां ध्यान लगाया यह सिर्फ वहीं है,
कोई कहता आभास हो रहा मुझे आत्मा का
किसी के शरीर में जीते जी प्रवेश कर जाती
ना जले न मरे ना ही पानी इसे डूबा सकता
इसीलिए मीनू ने इसे रहस्मयी आत्मा कही है।