रहमत थी हर जान ,,,
जीवन सौदा बन गया
बस लेन- देन एहसान
धरती अम्बर, पर्वत खाई
बांट लिए गये भगवान ,,,
पंछी भी चाहा बांट लें
पर रोके ना रुकी उड़ान
अपनी पृथ्वी नष्ट करें
और मंगल पर अभिमान ,,,
नफ़रतों का पौधा सींचते
और बन जाते अंजान
जीवन की बरकत प्रेम
नैयमत यकीन और प्राण ,,,
क्यूँ नाशुकरा हो गया
था बेमिसाल इंसान
खुद मालिक बन बैठे
रहमत थी हर जान ,,,
पूजा की घंटी नहीं बजे
ना ही सुनाई दे अज़ान
बच्चों की मुस्कान में
हसते हैं यहां भगवान ,,,
– क्षमा उर्मिला
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