रहमतें
हँसी खुशी चल रही थी जिन्दगी
फिर वो काली रात आ गयी
नींव ही खुदी थी आशियाने की
भारी आँधी बरसात आ गयी
कोसते रहे इस मौसम को हम
मन में भीगने की बात आ गयी
भीगने निकले ही थे बाहर घर से
धूप भी हमारे ही साथ आ गयी
हर तरह खुद को ढाल लिया हमने
तोड़ने हर बार कायनात आ गयी
“सन्दीप कुमार “