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26 Sep 2024 · 1 min read

‘ रहब हम मिथिलादेश में ‘

‘ रहब हम मिथिलादेश में ‘

छी,असभ्य गंवार भने हम,
आजु क’ मुलुक परिवेश में।
छोड़ब नञ संस्कार पुरातन,
दृढ़प्रतिज्ञ रहब अपने भेष में।

देश कोनो भारत जेका नञ,
मिलत ई सकल उपनिवेश में।
धर्म संस्कृति विज्ञान पुरातन,
अचंभित सभ अछि विदेश में।

पाश्चात्य जगत के देखा-देखी,
करु नञ अप्पन देश में।
लाज-धरम भ’जायत कलंकित,
नजर से गिरब परदेश में।

भटैक रहल अइ आजु कऽ पीढ़ी,
कहैये जायब हम बिदेस में ।
इलिम नहिं सीखत एतअ कोनो,
खेपब जिनगी अर्निवेश में।

भऽ रहल अछि समाज प्रभावित,
आधुनिकता चढ़ल ई भेष में ।
चकाचोन्ह से नैन भेल आन्हर,
शिक्षा मिलल एहने सनेस में।

व्यभिचार,रजामंदी बइन गेल,
दूषित भऽ रहल अनुवेश में।
समलैंगिकता,अपराध नञ रहल,
न्याय सिंहासन क, आदेश में।

राखू अप्पन डिग्री-विग्री,
हम तऽ रहबअपने परिवेश में।
खेत खलिहान बाग बगीचा,
रहब हम अप्पन मिथिलादेश में।

छी,असभ्य गंवार भने हम,
आजु क’ मुलुक परिवेश में..

मौलिक एवम स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २६/०९/२०२४ ,
आश्विन कृष्ण पक्ष, नवमी ,गुरुवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail.com

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