‘ रहब हम मिथिलादेश में ‘
‘ रहब हम मिथिलादेश में ‘
छी,असभ्य गंवार भने हम,
आजु क’ मुलुक परिवेश में।
छोड़ब नञ संस्कार पुरातन,
दृढ़प्रतिज्ञ रहब अपने भेष में।
देश कोनो भारत जेका नञ,
मिलत ई सकल उपनिवेश में।
धर्म संस्कृति विज्ञान पुरातन,
अचंभित सभ अछि विदेश में।
पाश्चात्य जगत के देखा-देखी,
करु नञ अप्पन देश में।
लाज-धरम भ’जायत कलंकित,
नजर से गिरब परदेश में।
भटैक रहल अइ आजु कऽ पीढ़ी,
कहैये जायब हम बिदेस में ।
इलिम नहिं सीखत एतअ कोनो,
खेपब जिनगी अर्निवेश में।
भऽ रहल अछि समाज प्रभावित,
आधुनिकता चढ़ल ई भेष में ।
चकाचोन्ह से नैन भेल आन्हर,
शिक्षा मिलल एहने सनेस में।
व्यभिचार,रजामंदी बइन गेल,
दूषित भऽ रहल अनुवेश में।
समलैंगिकता,अपराध नञ रहल,
न्याय सिंहासन क, आदेश में।
राखू अप्पन डिग्री-विग्री,
हम तऽ रहबअपने परिवेश में।
खेत खलिहान बाग बगीचा,
रहब हम अप्पन मिथिलादेश में।
छी,असभ्य गंवार भने हम,
आजु क’ मुलुक परिवेश में..
मौलिक एवम स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २६/०९/२०२४ ,
आश्विन कृष्ण पक्ष, नवमी ,गुरुवार
विक्रम संवत २०८१
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