“रहनवा”
हिसाब क्या करूँ तुमसे,
ऐ मेरे रहनवाओं,
तुमने क्या लिया, क्या दिया,
खून के एक -एक कतरें से,
मुझे सींच दिया,
बोझ मरी नौ माह,
मेरे लिए एक – एक पल जिया,
कोख से बाहर आया,
पलकों पे बिठा लिया,
मेरे रोने पे आँचल में छिपा,
दूध दिया,
मोह के बँधनों में बाँध,
रिश्तों से नवाज़ दिया,
नज़र न लग जाये ज़मानें की,
माथे पे काला टीका किया,
बरगद से पिता की छाया में,
महफ़ूज किया,
हिसाब क्या करूँ तुमसे,
ऐ मेरे रहनवाओं,
तुमने क्या लिया, क्या दिया,
बाँहों के झूले में,
बिंदास जिया,
ढाल बन पिता ने,
हर मुसीबत को टाल दिया,
मैं अपने सपने जी पाऊँ,
अपने सपनों को होम किया,
अपने तन पे लंगोटी,
मेरे अरमानों को जिया,
कैसे हिसाब लगा पाऊँगा,
क्या – क्या मुझे दिया,
गैरत है मुझमें अगर,
भुला नहीं पाऊँगा,
अहसानों को,
जीऊँगा तुम्हारें ही लिये,
“शकुन” अपने लिये जिया,
तो क्या जिया।।