रहते हो तुम क्यों खुद से ही इतने खफ़ा खफ़ा
रहते हो तुम क्यों खुद से ही इतने खफ़ा खफ़ा
हँस लो हँसा लो गम खुशी दोनों मिला मिला
वैसे तो हौसलों की कमी है नहीं मगर
रुख देख कर ज़माने का दिल है डरा डरा
कोई दवा पुरानी नहीं काम आ सकी
हर बार क्योंकि ज़ख्म ही पाया नया नया
अरमान तो है शान से बेटी विदा करूँ
लेकिन विदाई सोच ही दिल है भरा भरा
जब जब भी ज़िन्दगी ने जुदा अपनों से किया
महसूस हमने तब किया खुद को लुटा लुटा
क्यों बोझ लगने लगती है औलाद को वो माँ
पाला है जिसने अपनी मुहब्बत लुटा लुटा
हारे नहीं अँधेरों से भी ‘अर्चना’ कभी
ले जुगनुओं को साथ बढ़े हम जरा जरा
11-02-2018
डॉ अर्चना गुप्ता