रस्म ए उल्फ़त में वफ़ाओं का सिला
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1)रस्म-ए-उल्फ़त में वफ़ाओं का सिला देता है ,
रूठकर मुझको वो हर बार सज़ा देता है
2)अब तमन्ना ही नहीं दिल में मेरे जीने की
मर भी जाऊँ तो भला कौन सदा देता है
3) सोचती हूँ कि तराने मैं ख़ुशी के गाऊं
पर ज़माना मिरी आवाज़ दबा देता है
4)मुझको ख़ुद अपनी ख़बर अब नहीं रहती जानाँ
ग़म का एहसास तो हर शय को भुला देता है
5) अब ताल्लुक में कशिश मंतशा कुछ बाक़ी नहीं
कोई रिश्तों में यहाँ ज़हर मिला देता है
🌹मोनिका मंतशा🌹