रस्म अदायगी
पति के मृत्यु की सुचना आई थी। साथ ही सन्देश भी,”पत्नी तो तुम ही हो, चिता को अग्नि बड़ा बेटा ही तो देता हैं।”
परिवार और स्वयं उसने अपमान कर जब बीस साल पूर्व निकाला था तब क्या? जाना तो था ही।
आँखों की नमी तो बीस साल में सूख चुकी थी।खुसुर-फुसुर शुरू थी, कैसे श्रृंगार करके आयी है।और ना जाने क्या-क्या?
ना जाने मेरे धीर-गंभीर पुत्र को क्या हुआ”चलो माँ,मै आपके लिए आया था, किसी रस्म अदायगी के लिये नहीं,मेरी माँ और पिता दोनों आप हैं। रही बात श्रृंगार की तो वो मेरी माँ का शौक हैं और उसे वे निरंतर करती रहेंगी।”