रस्मे (हास्य)
हमारी शादी में विदा से पहले देवी पूजन कमरे में जाते समय सालिया रास्ता रोक कर खडी हो गयी और कोई गीत गाने को कहा लेकिन मुझे कुछ आता नही था ।
वह ज़िद करते हुए कह रही थी :
“जीजू हम दरवाजे से नहीं हटेंगे जब तक आप कोई गाना ना सुना दें” मैने कहा :
“मुझे तो गाना आता ही नहीं”
इस पर वे बोली
“जीजू दीदी को फोन पर तो बहुत गाना सुनाते थे”
मैं और ज्यादा घबरा गया। ऐसा तो कुछ था नहीं यह सब सामने कैसे बोल रही है ।
तभी एक साली बोली:
“ओ हो जीजू ऐसा लगता है दीदी को देख सब भूल गए! पर हम ऐसे नहीं जाने देंगे”
अब भूल मेरे लिए क्लू बन गया और पुराना एक गाना याद आ गया जिसे मैने गा दिया:
” तुम मुझे यू भूला न पाऐगे
जब सुनेगे गीत मेरे
संग संग गुनगुनाओगे ।”
इसके बाद जो समा बंधा कि मजा आ गया
मेरी होने वाली पत्नी संध्या ने भी गाया :
“तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं” जिसकी मैंने अगली लाइन पूरी की
“जहाँ भी ले जायें , राहें.. हम संग संग हैं”
तब सालियो ने हिप हिप हुर्रे कह कर तालियाँ बजाई और
हम कमरे में चले गये फिर आगे रस्मे पूरी हुई ।
लेखक संतोष श्रीवास्तव