रसीली तान बंशी की सुना देना हे मनमोहन
गीत
1222 1222 1222 1222
रसीली तान बंशी की सुना देना हे मनमोहन
हमारे मन को वृंदावन बना देना हे मनमोहन।
रसीली तान बंशी की………
तुम्हारी बंशी सुनकर के मुदित होते हैं जड़ चेतन,
पड़े आवाज कानों में बहक जाता है तन औ’र मन।
उसी बंशी से सुर सरिता बहा देना हे मनमोहन।
रसीली तान बंशी की………
जुड़े हैं संगी साथी गोपियाँ सब रास रचने को,
तुम्हारे बिन रुकी है प्रेम की रसधार बहने को।
उसी रसधार में सबको डुबा देना हे मनमोहन।
रसीली तान बंशी की………
किसी को ज्ञान ऊधौ का समझ आता नहीं है अब,
हमारे बस मे अब तन मन नहीं तुम ले गये हो सब।
तुम्हारे प्रेम रोगी हैं दवा देना हे मनमोहन।
रसीली तान बंशी की……….
वो गोपी ग्वाल औ गैयां यशोदा नंद बाबा भी,
तुम्हारी राह देखें हैं अधिक मत अब सताओ जी।
हुई हो भूल गर कोई भुला देना हे मनमोहन।
रसीली तान बंशी की………..
……✍️ प्रेमी