रवि – डी के निवातिया
दिनांक : २४ फरवरी २०२२
दिन : बृहस्पतिवार
विधा : कविता
विषय : प्रकृति
शीर्षक : ” रवि ”
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प्रभात बेला में निकलकर,
स्वर्ण किरण बिखराता रवि !
सप्तअश्व रथ हो सवार,
मंद मंद मुस्काता रवि !
इठलाती बलखाती नदियों के,
प्रखर वेग को चमकाता रवि !
बहतें झरनो की कल कल में,
तान सरगम छनकाता रवि !
अप्सराओ सी मुदित छटा,
प्रकृति में बिखराता रवि !
स्वर्ण जड़ित पीली धूप चूनर,
पर्वत माला को पहनाता रवि !
नित सवेरे स्वयं जागकर,
संग में जगत जगाता रवि !
पेड़ो की पत्तियों से झांकता,
लालिमा सौंदर्य पर इठलाता रवि !
शैनेः शैनेः पग पसार नित,
पथ पर बढ़ता जाता रवि !
दिवस चढ़े ज्यों ज्यों तम,
धूप का मिजाज बतलाता रवि !
निडर निश्छल नियत चलता जाता,
शश्वत्, अटल, अभेद्य इतराता रवि !
शाम ढले सागर में नहाता,
मनोरम रूप बरसाता रवि !!
!
स्वरचित : डी के निवातिया