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14 May 2023 · 1 min read

फाग

हवा आज फिर दस्तक दे बाहर बुला रही है
तुम्हारी रूह फिर हमें आवाज़ लगा रही है |

बयार फिर तिनकों को मेरे पास गिरा रही है
लम्हों को समेटते हुए चूड़ियाँ खनखना रही हैं |

कुछ अबीर कुछ गुलाल के कतरे , रंग के छीटें
रंग दूब का बदल गए थे तुम्हारे हाथों से गिर

चौखट भी मुस्कुराती थी सुन पदचाप पुरानी
हर तिनके में छिपी है कोई याद सुहानी |

मुट्ठी में भर गुलाल , न हंसते न मुस्कुराते
चुपके से लगा गुलाल , बस आँखों से सब कह जाते |

फागुन का पक्का रंग कुछ लम्हों पर चढ़ गया है
रूह का रोम रोम उस रंग में रंग गया है |

जुदा हो गए हैं रंग रुखसार के ज़िन्दगी से मगर
गुलाल लगाएं ज़रा आओ हम भी तुम्हारी रूह पर |

कतरे लाल गुलाल के छिड़क दो न सूने ललाट पर तुम
एक सदी हुई , सुना दो न फाग की वही पुरानी धुन |

सोंधी सी खुशबू तुम्हारे आने की हर कोना महका रही है
तुम्हारी रूह भी संग हमारे, लम्हों को जीना चाह रही है |

समेट लेते हैं रूह को तुम्हारी ,अपनी पलकों के साए तले
आओ हम भी उसी पगडंडी पर तुम्हारी रूह के संग चलें |

…………………………..डॉ सीमा ( कॉपीराइट )

Language: Hindi
84 Views
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