रम्य भोर
मुक्तक
चुनो जो पंथ अनुगम्य हो जाये।
प्रेम से हर भूल क्षम्य हो जाये।
उर उर्मियाँ परस्पर अवलंब हों।
क्षितिज की हर भोर रम्य हो जाये।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)
मुक्तक
चुनो जो पंथ अनुगम्य हो जाये।
प्रेम से हर भूल क्षम्य हो जाये।
उर उर्मियाँ परस्पर अवलंब हों।
क्षितिज की हर भोर रम्य हो जाये।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)