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28 Sep 2016 · 1 min read

रम्य भोर

मुक्तक
चुनो जो पंथ अनुगम्य हो जाये।
प्रेम से हर भूल क्षम्य हो जाये।
उर उर्मियाँ परस्पर अवलंब हों।
क्षितिज की हर भोर रम्य हो जाये।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

Language: Hindi
1 Like · 294 Views
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