रेशमी केश
जब जब मन्द बयारें चलती
रेशमी केश अपने लहराया करती हो
जब जब मेघ गगन में घिरते
इन्द्रधनुषी छटा दिखलाती हो
रूपसि तुम कोन हो ?
मायाजाल में मुझको उलझाती हो
अम्बर से ही अवनि तक लेकर
आँचल लहरा मन्द मुस्काराती हो
जब जब देखा है तुमको
गांव की पगडण्डी थिरक लुभाती हो
आमों की बौर पर लावण्य बिखेर
स्वर्गिक बाला सी तुम इठलाती हो