“रमता जोगी”
रमता जोगी गाता जाये,
क्यूँ रम गया तू,
जग में आये,
झूठी काया, झूठी माया,
हाथ पसारे, इक दिन जाये,
पंचतत्वों से बना शरीर,
पंचतत्वों में ही मिल जाये,
फिर भी बन्दे तू मन में,
माया देख देख हर्षाये,
दो कपड़े पहने तन पे,
गिनती के दो निवालें खाये,
कफ़न लिपटेगा तन पे तेरे,
धूं – धूं चिता तुझे जलाये,
उमरिया सारी खो दी तूने,
माया की चिंता को, चिता बनाये,
इक दिन तू न सोया चैन से,
व्यथित मन दिन रैन जलाये,
काहें जोड़ -जोड़ के माया,
तिजोरियाँ अपनी भरता जाये,
रैन-बसेरा है ये दुनिया,
दाना-चुग इक दिन उड़ जाये,
तात, मात, भ्रात यहीं पर,
हाथ मलते के मलते रह जायें,
न कोई संग में आया तेरे,
न कोई तेरे संग में जाये,
फिर भी तूने काहे बन्दे,
महल दुमहले रिश्तें बनाये,
रिश्तों की हैं अजब कहानी,
जी का जंजाल यह बन जाये,
राम – राम भजलें “शकुन”,
वो ही तुझे भव पार लगाये।