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24 Aug 2021 · 1 min read

रब्ब का वास्ता

**** रब्ब का वास्ता ****
**** 222 212 22 ****
*********************

तुमको है रब्ब का वास्ता,
लौटो तुम ढूंढ कर रास्ता।

कुछ भी तो अब नहीं है जो,
छोड़ो तुम चाप का नाश्ता।

खालो भी तुम खुराकें शुद्ध,
खाओ मिसरी भरा पास्ता।

है कब विश्वास जन गण को,
खोने है अब लगी आस्था।

मनसीरत सच सदा कहता,
कोई सुनता नहीं है दास्ताँ।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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