रफी दीवाना
खुदा जाने कैसा दीवाना था वो ,
मक्कारी ,झूठ से अंजाना था वो ।
गुरुर को तो जनता हो ना था वो ,
सबसे हंस कर मिलता था जो वो ।
दौलत को हाथों की मैल समझता ,
जरूरतमंदों पर बेहिसाब लुटाता वो।
पेशगी वास्ते कभी झिक झ़िक ना की ,
जितनी भी मिली अपना लेता था वो ।
फिल्मी दुनिया की शोशे बाजी से दूर ,
परिवार के साथ समय गुजरता था वो।
जिस से जो भी मिलता फूल या कांटे ,
सभी को प्यार से गले लगा लेता था वो ।
मां शारदे का सच्चा / समर्पित सपूत था ,
बस संगीत पर ही जान लुटाता था वो ।
विशेष सम्मान / इनाम की कोई चाह नहीं,
प्रशंसकों के प्यार को महत्व देता था वो।
जाति,धर्म,वर्ग की दीवारों तोड़ समभाव से,
इंसानियत को ही बड़ा धर्म बताता था वो।
नात कव्वाली ,भक्ति गीत और गुरुबाणी ,
सभी को रूहानी स्वर से सजाता था वो।
गर कोई करता था गायिकी की तारीफ ,
तो खुदा की ओर इशारा करता था वो ।
सारा वक्त गुजरता संगीत की इबादत में,
या बस खुदा की बंदगी करता था वो ।
संगीत के सफर में नए मुसाफिरों के लिए ,
राह दिखाता और राह छोड़ता भी था वो ।
और क्या कहें उसकी शान में हम दोस्तों,!
इंसान के रूप में एक फरिश्ता था वो ।
उसके जहां से जाने के ४१ साल बाद भी ,
कसम से अब भी बहुत याद आता है वो ।