रफ़ता रफ़ता न मुझको सता ज़िन्दगी.!
रफ़ता रफ़ता न मुझको सता ज़िन्दगी.!
मैं जियूँ कैसे तुझको..? बता ज़िन्दगी।
हादसों में रहा मुब्तला….., हर समय,
एक पल को खुशी कर अता ज़िन्दगी।
मुद्दतें हो गईं………, तुझको’ रूठे हुए,
क्या हुई मुझसे आख़िर ख़ता ज़िन्दगी?
दर्द, आँसू, तड़प, बेबसी के सिवा…..!
मौत का भी तो’ दे दे.., पता ज़िन्दगी।
बेज़ुबां इक “परिंदा” गिरा…, चीखकर,
अब जला दे मेरी तू…, चिता ज़िन्दगी।
पंकज शर्मा “परिंदा” 🕊️