रदीफ हूँ मैं फ़कत और काफ़िया तू है
ग़ज़ल (बह्र – मुजतस मुसम्मन मकबून महज़ूफ)
रदीफ हूँ मैं फ़कत और काफिया तू है।
मेरी ग़ज़ल है मुकम्मल जो ज़ाविया तू है।।
ये मयकशी में बड़ा लुत्फ़ आ रहा है मुझे।
मेरे सुरूर ए मुहब्बत का साक़िया तू है।।
न जुस्तजू है मुझे अब किसी भी मंज़िल की।
मुझे अज़ीज़ सफ़र मेरा साथिया तू है।।
करार-ओ-चैन-ओ सुकूं मेरा छीन कर बैठा।
जो राज दिल पे करे ऐसा माफिया तू है।।
हुनर भी खूब तुझे ये” अनीश “है आता।
हँसा दिया है बड़ा ही मज़ाकिया तू है।।
—-अनीश शाह