रत्नों में रत्न है मेरे बापू
रत्नों में रत्न है मेरे बापू
मेरे सिर के ताज और अभिमान है मेरे बापू।।
दुनिया के हर दौलत बेकार है उनके आगे
उनसे ही हर सोहरत सकार हैं मेरे सारे
जब पिता को नहीं देखतीं हूं मन बेचैन हो उठता है
उनसे ही ‘ओ मेरे खुदा’ सुबह-शाम मेरा होता हैं
रत्नों में रत्न है मेरे बापू
मेरे मन का आस और विश्वास है मेरे बापू।।
सच और झूठ है क्या?
दुनिया के रंग-रूप हैं क्या?
हर बात से अवगत करातें हैं हमें
खुद दुःख सहकर,हर खुशियों से नवाजते हैं हमें
रत्नों में रत्न है मेरे बापू
मेरे मन का दर्पण और अर्पण है मेरे बापू।।
पिता जैसा कोई और ना होगा
उनके जैसे दुनिया हमें कोई और ना देगा
जितना चाहे हम अपने मन का कर ले मनमानी
खुशी-खुशी सह जातें हैं हमारे हर शैतानी
रत्नों में रत्न है मेरे बापू
मेरे मन का स्वाभिमान और अरमान है मेरे बापू।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार