रण मध्य राणा
मेवाड़ राज रण कौशल से,
शत्रु की नींद भी टूट गई।
मानो हाथों से काँप काँप,,
शमशीर अचानक छूट गई।।
चेतक पर चढ़ चिल्लाता था।
मानो सिंह सम वह ध्वनि थी।
आता समक्ष राणा के जो,
मानो मृत्यु ही आनी थी।।
बख्तर था निज बाहत्तर का,
और इक्यासी का भाला था।
लिए संग द्विशत् अष्ट शेर,,
रण-बीच खड़ा निराला था।।
जो हाथी आगे आया तो,
चेतक आगे आ जाता था।
मानो मेवाड़ के चेतक से,,
हस्ती भी मात खा जाता था।।
कहता स्वीकार है मृत्यु पर,
स्वीकार मुगलों का राज नहीं।
जो जिएँ परतंत्र के बंधन में,,
कहते उसको स्वराज नहीं।।
———————भविष्य त्रिपाठी।